क्या जनरेशन Z सच में जल्दी बूढ़ी हो रही है? जानिए चौंकाने वाली सच्चाई!

क्या आपने कभी सोचा है कि आजकल 20 से 25 साल की उम्र के युवा वो सब झेल रहे हैं, जो पहले सिर्फ 60-70 साल की उम्र में होता था? हार्ट अटैक, बालों का झड़ना, कमर झुकना, नींद ना आना, सफेद बाल, लगातार थकावट और मानसिक तनाव ये सब अब बुज़ुर्गों की नहीं, बल्कि कॉलेज जाने वाले या नौकरी ढूंढते नौजवानों की पहचान बन चुके हैं। Generation Z यानी वो पीढ़ी जो साल 2000 के बाद पैदा हुई, वो अब अपनी जवानी के सालों में ही बुढ़ापे जैसे लक्षणों से जूझ रही है। यह सिर्फ एक इत्तेफाक नहीं है, बल्कि एक गंभीर संकेत है कि कहीं कुछ बहुत गलत हो रहा है हमारी जीवनशैली में, सोचने के तरीके में, और उस डिजिटल दुनिया में जिसे हमने अपनी असली दुनिया बना लिया है। सवाल ये है कि इतनी कम उम्र में ही शरीर और मन इतना थक क्यों रहा है? क्या सोशल मीडिया, तनाव, खराब खानपान, नींद की कमी, और लगातार खुद को साबित करने का प्रेशर हमारी नई पीढ़ी को वक्त से पहले बूढ़ा बना रहा है? चलिए, जानते हैं उन चौंकाने वाले कारणों को, जिनकी वजह से आज का युवा अपने ही शरीर और मन से वक्त से पहले ही बुढ़ापे की दहलीज़ पर सामने खड़ा दिखाई दे रहा है।

लड़कियों में पहले ही शुरू हो रहा है प्यूबर्टी

Two young Indian schoolgirls in uniform, one looking anxious and holding her chest in discomfort, possibly experiencing early signs of puberty, while the other looks concerned. Classroom setting in the background, expressing emotional confusion during early puberty.
कम उम्र में प्यूबर्टी की शुरुआत से जूझती बच्चियां: तस्वीर में दिखाई गई छात्रा डर और झिझक के साथ पहला बदलाव महसूस कर रही है।”

आजकल बच्चों में जिस उम्र में पहले मासूमियत दिखती थी, अब वहां शरीर में बड़े बदलाव बहुत जल्दी शुरू हो रहे हैं। एक स्टडी के मुताबिक, भारत के शहरी इलाकों में 80% लड़कियाँ महज 11 साल की उम्र में ही प्यूबर्टी यानी यौवन अवस्था में पहुंच रही हैं। पहले ये उम्र 13 साल के आसपास मानी जाती थी, लेकिन अब यह दो साल पहले ही हो रहा है। इसका मतलब ये है कि बच्चियों में पीरियड्स का आना, ब्रेस्ट डेवलपमेंट और हार्मोनल बदलाव बहुत जल्दी शुरू हो जाते हैं। इसी तरह लड़कों में भी जल्दी फेशियल हेयर (दाढ़ी-मूंछ) आना और आवाज़ भारी होना जैसी चीज़ें समय से पहले हो रही हैं। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इसके पीछे की बड़ी वजहें हैं – प्रोसेस्ड फूड, प्लास्टिक में रखा खाना, नींद की कमी, तनाव और हार्मोन डिसरप्टिंग कैमिकल्स। बच्चों का लाइफस्टाइल जितना तेज़ और असंतुलित होता जा रहा है, उतनी ही तेजी से उनका शरीर समय से पहले बड़ों की तरह व्यवहार करने लगा है। यह एक गंभीर सामाजिक और स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा बनता जा रहा है, जिस पर हर माता-पिता को जागरूक होना ज़रूरी है।

25 की उम्र में बाल झड़ना और गंजापन

A young Indian man around 25 years old looking at his bald scalp in the mirror, visibly concerned about hair loss and premature balding.
25 की उम्र में बाल झड़ने और गंजेपन की चिंता युवाओं में समय से पहले बुढ़ापा अब आम होता जा रहा है।

आजकल Generation Z के बच्चों में समय से पहले बाल झड़ना और गंजेपन की समस्या बेहद आम हो गई है, खासकर युवाओं में। 25 साल की उम्र में ही कई लड़के-लड़कियां बालों के झड़ने और पतले होने की शिकायत करने लगे हैं। यहां तक कि कॉलेज में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स तक इस परेशानी से गुजर रहे हैं। डॉक्टरों की मानें तो यह स्थिति और भी गंभीर हो चुकी है – क्योंकि अब 13–14 साल की उम्र के बच्चे भी समय से पहले सफेद बालों, भारी हेयरफॉल और यहां तक कि चेहरे पर झुर्रियों जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। इसके पीछे मुख्य कारणों में बदलती जीवनशैली, पोषण की कमी, नींद की अनियमितता, मानसिक तनाव, अत्यधिक स्क्रीन टाइम, और बालों पर बार-बार केमिकल वाले प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल शामिल हैं। युवावस्था में जब शरीर और दिमाग को सही विकास की जरूरत होती है, तब अगर खान-पान और देखभाल सही न हो तो इसका सीधा असर बालों और त्वचा पर पड़ता है। इसके अलावा जेनेटिक कारण भी भूमिका निभाते हैं, लेकिन एक्सपर्ट्स मानते हैं कि आजकल की पीढ़ी में समय से पहले बुढ़ापे जैसे लक्षण दिखना एक बड़ा अलार्म है। इसलिए युवाओं को चाहिए कि वे हेल्दी डाइट लें, नियमित रूप से व्यायाम करें, बालों की देखभाल में घरेलू और नेचुरल उपाय अपनाएं और तनाव को कम करने की कोशिश करें, ताकि बालों की सेहत को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सके।

अब हार्ट अटैक का खतरा बढ़ा 20 से 40 साल के युवाओं में

पहले हार्ट अटैक को एक ऐसी बीमारी माना जाता था, जो 60-65 की उम्र के बाद शरीर को घेरती है। लेकिन अब ये धारणा पूरी तरह टूट चुकी है। हाल के वर्षों में ऐसे हजारों मामले सामने आए हैं, जहां 20 से 30 साल के युवा जो बाहर से पूरी तरह फिट दिखते थे अचानक जिम में वर्कआउट करते हुए या सोते समय हार्ट अटैक से चल बसे। सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों पर आए दिन ये खबरें देखना आम बात हो गई है कि कोई युवा क्रिकेट खेलते हुए गिर पड़ा, कोई शादी में डांस करते-करते बेहोश हो गया और कुछ ही मिनटों में उसकी जान चली गई। यह ट्रेंड सिर्फ डरावना नहीं, बल्कि हमारी लाइफस्टाइल, खानपान, और मानसिक दबाव से जुड़ी गहरी समस्याओं का इशारा करता है

A group of young Indian adults, both men and women in their 20s and 30s, experiencing sudden chest pain and discomfort in a hospital setting, with a visible "Cardiac Emergency" sign in the background.
20 से 35 साल के युवा भी हो रहे हैं हार्ट अटैक का शिकार बढ़ता तनाव, गलत जीवनशैली और अनियमित दिनचर्या है

विशेषज्ञों की मानें तो युवाओं में हार्ट अटैक की ये घटनाएं चार प्रमुख कारणों से हो रही हैं:

  1. अत्यधिक मानसिक तनाव, करियर, रिलेशनशिप और सोशल मीडिया से उपजने वाला प्रेशर
  2. असंतुलित आहार, जिसमें जंक फूड और प्रोसेस्ड आइटम्स की भरमार है
  3. फिजिकल एक्टिविटी का गलत तरीका, जैसे अत्यधिक या गलत वर्कआउट करना
  4. और सबसे अहम, समय पर मेडिकल चेकअप न कराना, जिससे हार्ट से जुड़ी शुरुआती समस्याएं पकड़ में नहीं आ पातीं

कुछ रिपोर्टों के अनुसार, भारत में हार्ट अटैक के मामलों में 20 से 40 वर्ष की उम्र के युवाओं की भागीदारी अब पहले से कहीं ज्यादा है। 2023 की एक हेल्थ स्टडी के मुताबिक, शहरी युवाओं में अचानक कार्डियक अरेस्ट के केस पिछले 5 सालों में 30% तक बढ़े हैं। ये आंकड़े सिर्फ नंबर नहीं हैं, ये आने वाली Generation Z पीढ़ी की सेहत और जीवनशैली पर उठ रहे गंभीर सवाल हैं। इसलिए यह समय है कि युवा खुद को सिर्फ बाहरी फिटनेस तक सीमित न रखें, बल्कि भीतर से स्वस्थ रहना और हार्ट की केयर करना भी उतना ही ज़रूरी समझें। रेगुलर चेकअप, संतुलित जीवनशैली और स्ट्रेस मैनेजमेंट अब सिर्फ सलाह नहीं, बल्कि एक ज़रूरत बन चुके हैं

पोस्चर यानी शरीर की बनावट हो गई है जैसे बूढ़ों की

Young man with postural kyphosis walking with a hunched back, surrounded by Gen Z youth also showing poor posture due to excessive screen time and sedentary lifestyle
युवा पीठ झुकाकर चलते हुए दिख रहा है, जो लाइफस्टाइल और स्क्रीन टाइम की लत के कारण रीढ़ की हड्डी से जुड़ी बीमारी (Postural Kyphosis) की ओर इशारा करता है।

क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि आजकल Generation Z के बच्चों और युवा सीधे खड़े नहीं होते, बल्कि उनकी पीठ हल्की सी झुकी हुई दिखती है, जैसे कोई बुज़ुर्ग चल रहा हो? यह कोई इत्तेफाक नहीं है, बल्कि एक खतरनाक शारीरिक बदलाव है जो हमारी खराब लाइफस्टाइल और डिजिटल आदतों की देन है। मेडिकल रिपोर्ट्स और एक्स-रे स्टडीज़ के मुताबिक, साल 2001 से 2003 के बीच जन्मे बच्चों यानि Generation Z में रीढ़ की हड्डी (spine) का ऊपरी हिस्सा पीछे की तरफ बाहर निकल आता है, (जिसे मेडिकल भाषा में “Postural Kyphosis” कहा जाता है) अब सामान्य होता जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों और युवाओं में यह समस्या तेजी से इसलिए बढ़ रही है क्योंकि वे घंटों तक झुककर मोबाइल, टैबलेट या लैपटॉप स्क्रीन पर समय बिताते हैं, वो भी बिना ब्रेक लिए। लंबे समय तक गलत पोस्चर में बैठना, चलना या लेटना सीधे रीढ़ की हड्डी (Spine) पर असर डालता है और उसकी प्राकृतिक शेप को बिगाड़ देता है। स्कूलों में भारी बैग, फिज़िकल एक्टिविटी की कमी, और मोबाइल-गेमिंग की लत ने बच्चों की मांसपेशियों को कमजोर और शरीर को सुस्त बना दिया है। ये समस्या न सिर्फ शरीर की बनावट खराब करती है, बल्कि आगे चलकर कमर दर्द, गर्दन दर्द, माइग्रेन, और यहां तक कि आत्मविश्वास में भी कमी का कारण बनती है। डॉक्टर्स का कहना है कि अगर ये ट्रेंड नहीं रुका, तो आने वाले समय में 30 की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते एक पूरी पीढ़ी को पुराने जमाने की बुढ़ापे वाली बीमारियां झेलनी पड़ेंगी। इसलिए वक्त रहते सतर्क होना ज़रूरी है बच्चों और युवाओं को सही पोस्चर, रेगुलर फिज़िकल एक्टिविटी और स्क्रीन टाइम कंट्रोल की आदत सिखाना अब सिर्फ हेल्थ टिप नहीं, बल्कि भविष्य की जरूरत बन चुकी है।

कमर दर्द और गर्दन दर्द अब बच्चों की समस्या

हाल ही में भारत के 18 राज्यों में करीब 10,000 Generation Z के बच्चों पर की गई एक स्टडी में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। रिसर्च के मुताबिक, अब बच्चों को कम उम्र में ही कमर दर्द, गर्दन में खिंचाव और खराब पोस्चर की दिक्कतें होने लगी हैं। ये वही बीमारियां हैं जो पहले 50 या 60 की उम्र में नजर आती थीं। यानी हमारी आने वाली पीढ़ी ना सिर्फ मानसिक रूप से बल्कि शारीरिक रूप से भी जल्दी थकने और टूटने लगी है।

मानसिक तनाव और डिप्रेशन से जूझ रहे हैं युवा

आज की भागदौड़ और प्रतिस्पर्धा भरी जिंदगी में भारत के युवा तेजी से मानसिक तनाव, डिप्रेशन और एंग्जायटी (चिंता) जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं। UNICEF की 2021 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 15 से 25 साल की उम्र के करीब 14% युवा किसी न किसी मानसिक परेशानी का सामना कर रहे हैं यानी हर 7 में से 1 युवा मेंटल हेल्थ से जुड़ी चुनौती झेल रहा है। इसका मतलब यह है कि लाखों युवा पढ़ाई का दबाव, नौकरी की चिंता, पारिवारिक अपेक्षाएं, सोशल मीडिया की तुलना, ब्रेकअप या अकेलापन जैसे कारणों से मानसिक रूप से कमजोर महसूस कर रहे हैं। खास बात ये है कि ये परेशानियाँ दिखती नहीं हैं, लेकिन अंदर ही अंदर युवाओं को खोखला बना रही हैं जिससे उनकी पढ़ाई, करियर और रिश्तों पर बुरा असर पड़ता है। कई बार ये तनाव इतना बढ़ जाता है कि आत्महत्या जैसे खतरनाक कदम तक सामने आ जाते हैं। इसलिए आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है कि युवा मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हों, खुलकर बात करें, ज़रूरत पड़ने पर प्रोफेशनल हेल्प लें और परिवार व समाज भी उन्हें समझने और सपोर्ट करने का माहौल दे। ये कोई कमजोरी नहीं, बल्कि एक आम और काबिल इलाज वाली समस्या है जिसे समय पर पहचानना बहुत ज़रूरी है।

मोटापा बना तेजी से बूढ़ा होने की वजह

आज की तेज़ रफ्तार और असंतुलित जीवनशैली में मोटापा सिर्फ एक हेल्थ प्रॉब्लम नहीं, बल्कि तेजी से उम्र बढ़ने की एक छिपी हुई वजह बन गया है। रिसर्च के मुताबिक, मोटापा न सिर्फ शरीर को थकाता है, बल्कि चेहरे और स्किन पर भी उम्र के असर को तेजी से उभारता है। एक मशहूर स्टडी में देखा गया कि एक ही उम्र की दो जुड़वां बहनों में से जो बहन ओवरवेट थी, उसकी त्वचा पर झुर्रियां ज्यादा थीं और वह अपनी दुबली बहन से लगभग 10 साल बड़ी दिख रही थी। यानी मोटापा आपकी स्किन की उम्र को असल उम्र से कहीं ज्यादा बढ़ा सकता है। भारत में ये स्थिति और भी चिंताजनक है आज के समय में करीब 1.25 करोड़ जनरेशन Z (यानी 2000 के बाद जन्मे युवा) बच्चे और किशोर ओबेसिटी की कैटेगरी में आ चुके हैं। फास्ट फूड, बैठने की आदत, स्क्रीन टाइम में बढ़ोतरी और एक्सरसाइज की कमी इसके मुख्य कारण हैं। मोटापे के कारण शरीर में सूजन और हार्मोनल असंतुलन भी होता है, जिससे स्किन पर पिंपल्स, रिंकल्स और ढीलापन जल्दी दिखने लगता है। यह न केवल फिजिकल बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालता है। इसलिए अगर युवा चाहते हैं कि उनकी त्वचा लंबे समय तक जवान दिखे और वे भीतर से भी स्वस्थ रहें, तो जरूरी है कि वे अपने वजन को कंट्रोल में रखें, हेल्दी डाइट लें और एक्टिव लाइफस्टाइल अपनाएं।

जंक फूड और शुगर की लत

आज की युवा पीढ़ी स्वाद के चक्कर में सेहत से समझौता कर रही है, और इसका असर सीधे उनके चेहरे पर दिख रहा है। Swiggy की एक स्टडी बताती है कि भारत में ऑनलाइन फूड ऑर्डर करने वालों में आधे से ज़्यादा यूथ हैं। पिज्जा, वॉफल्स, बर्गर, कोल्ड ड्रिंक जैसी चीज़ें युवाओं की डेली डाइट का हिस्सा बन चुकी हैं, जिनमें हाई मात्रा में शुगर होता है। ज़्यादा शुगर न केवल वजन बढ़ाता है, बल्कि आपकी स्किन की क्वालिटी को भी नुकसान पहुँचाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, शुगर स्किन में मौजूद कोलाजन (Collagen) और इलास्टिन (Elastin) जैसे प्रोटीन को डैमेज करता है जो स्किन को टाइट, स्मूद और जवां बनाए रखते हैं। जब कोलाजन टूटता है, तो स्किन की इलास्टिसिटी घट जाती है, जिससे जल्दी रिंकल्स और ढीलापन आने लगता है। यही कारण है कि आजकल युवाओं की स्किन में भी एजिंग के लक्षण पहले से दिखाई देने लगे हैं। सुंदर और हेल्दी स्किन के लिए सिर्फ महंगे प्रोडक्ट्स नहीं, बल्कि हेल्दी और बैलेंस्ड डाइट की ज़रूरत है कम शुगर, ज़्यादा पानी, और नैचुरल फूड्स का सेवन, तभी जाकर असली ग्लो मिलेगा।

पार्टी कल्चर, स्मोकिंग और अल्कोहल

पार्टी में शराब और सिगरेट का सेवन करते हुए युवा – आधुनिक लाइफस्टाइल और बढ़ती स्वास्थ्य समस्याएं"
पार्टी कल्चर में डूबे युवा – शराब और सिगरेट की लत बन रही है नई पीढ़ी के लिए खतरा

आज भारत में किशोरों में नशे की लत एक गंभीर सामाजिक और स्वास्थ्य संकट बन चुकी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत में 10 से 14 साल के करीब 2 करोड़ बच्चे स्मोकिंग करते हैं और लगभग 19% किशोर लड़के अल्कोहल का सेवन करते हैं जो किसी भी समाज के लिए बेहद चिंताजनक है। स्मोकिंग न सिर्फ फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि यह स्किन के नेचुरल ग्लो को भी खत्म कर देती है। इससे स्किन में ब्लड सर्कुलेशन घटता है और समय से पहले रिंकल्स, झुर्रियां और डलनेस आने लगती है। वहीं, अल्कोहल शरीर के DNA में मौजूद टेलोमेयर्स को प्रभावित करता है जो हमारे सेल्स की उम्र और हेल्थ को नियंत्रित करते हैं। जब टेलोमेयर्स छोटे होते हैं, तो सेल्स जल्दी बूढ़े होने लगते हैं, जिससे इंसान की जैविक उम्र (Biological Age) तेजी से बढ़ती है। यानी नशा न केवल हमारे शरीर को अंदर से बीमार करता है, बल्कि समय से पहले बूढ़ा भी बना देता है। ऐसे में युवाओं को सावधान और सतर्क रहकर अपने शरीर और भविष्य दोनों की सुरक्षा करनी होगी।

मेकअप और परिकल्पना-लोगों का दृष्टिकोण

Young Indian woman with makeup vs without makeup, showing visual age difference perception"
एक ही उम्र की दो महिलाएं मेकअप और बिना मेकअप के लुक में फर्क साफ़ नजर आता है, जो समाज की उम्र को देखने की सोच को दर्शाता है।

एक स्टडी के अनुसार, मेकअप का असर, लोगों की सोच यानी किसी की उम्र को देखने और समझने के नजरिए पर भी पड़ता है। रिसर्च में पाया गया कि जब 20 साल की लड़कियों ने हैवी मेकअप किया, तो लोग उन्हें उनकी उम्र से कहीं ज्यादा बड़ी समझने लगे। वहीं 40 से 50 साल की महिलाएं जब मेकअप करती हैं, तो वे अन्य की तुलना में कम उम्र की और फ्रेश दिखने लगती हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि आजकल के यूथ जिस तरह का मेकअप और फैशन अपनाते हैं, वह कभी-कभी उन्हें उनकी असली उम्र से ज़्यादा मैच्योर या बूढ़ा दिखा सकता है। यह केवल बाहरी लुक की बात नहीं है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे समाज की आंखें और मानसिकता बदलते लुक्स के आधार पर उम्र का अंदाज़ा लगाने लगी हैं। इसलिए जरूरी है कि युवा इस बात को समझें कि मेकअप एक कला है, लेकिन इसे संतुलित और उम्र के हिसाब से इस्तेमाल करना ज़्यादा प्रभावी होता है।

जनरेशन गैप और टेक्नोलॉजी समझ का भ्रम

आज के दौर में बच्चों की टेक्नोलॉजी के प्रति समझ और उपयोग करने की क्षमता आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गई है। 10 साल के बच्चे भी मोबाइल, कंप्यूटर, इंटरनेट और ऐप्स को इतनी सहजता से चलाते हैं जैसे वे जन्म से ही इनके साथ बड़े हुए हों। यह देख कर अक्सर बड़े-बुज़ुर्ग यह मान लेते हैं कि ये बच्चे मानसिक रूप से भी काफी परिपक्व हो गए हैं। लेकिन यह धारणा पूरी तरह सही नहीं है। असल में, तकनीक के साथ इनका आत्मविश्वास और सहजता एक तरह की स्किल या व्यवहारिक समझ को दर्शाती है, न कि मानसिक और भावनात्मक परिपक्वता को। परिपक्वता केवल तकनीक को चलाने से नहीं आती; यह जीवन के अनुभव, सामाजिक समझ, भावनाओं को संभालने और सही निर्णय लेने की क्षमता से जुड़ी होती है, जो उम्र के साथ धीरे-धीरे विकसित होती है। इसलिए यह ज़रूरी है कि हम बच्चों की तकनीकी दक्षता को उनकी संपूर्ण मानसिक परिपक्वता न समझें, बल्कि उनके अंदर सही सोच-विचार और सामाजिक समझ भी विकसित करने पर ध्यान दें।

निष्कर्ष: समस्या गंभीर है, लेकिन हल हमारे हाथ में है

जनरेशन Z को हो रही समस्याएं जैसे स्ट्रेस, मानसिक असंतुलन, थकावट, जल्दी बुढ़ापा दिखना और अस्वस्थ जीवनशैली हमें एक गहरी सीख देती हैं: आज के समय में हेल्दी लाइफस्टाइल अब कोई ऑप्शन नहीं, बल्कि ज़रूरी जरूरत बन गई है। टेक्नोलॉजी और तेज़ रफ्तार जिंदगी के बीच अगर हम खुद को फिट, शांत और अंदर से मजबूत रखना चाहते हैं, तो हमें अपनी दिनचर्या में बदलाव लाना ही होगा। संतुलित खानपान, समय पर सोना और उठना, डिजिटल डिटॉक्स (यानि मोबाइल और स्क्रीन से कुछ समय की दूरी), रोज़ाना थोड़ी बहुत एक्सरसाइज, और मानसिक शांति बनाए रखने के उपाय जैसे ध्यान या खुलकर बातचीत ये सभी मिलकर हमारे शरीर और दिमाग को एक हेल्दी बैलेंस में रखते हैं। यही वो सच्चा एंटी-एजिंग फॉर्मूला है, जो सिर्फ बाहर से नहीं, अंदर से भी हमें जवां और तंदुरुस्त बनाए रखता है।

अपने शरीर और दिमाग का ख्याल रखना अब सिर्फ हमारे लिए नहीं, बल्कि हमारे परिवार और समाज के लिए भी ज़रूरी है।

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