भारतीय बाबाओं की कमाई का काला सच: आस्था या कारोबार?

भारत में बाबाओं का काला कारोबार हज़ारों करोड़ का है

क्या आपने कभी सोचा है कि भारत के कई बाबा इतने अमीर कैसे हो जाते हैं? कैसे एक साधारण कपड़े पहनने वाला व्यक्ति करोड़ों की संपत्ति का मालिक बन जाता है? ओशो के पास 93 रोल्स रॉयस थीं, नित्यानंद के पास विदेश में अपनी “देश” जैसी जगह है, और जाकिर नायक के पास 100 करोड़ की संपत्ति और 25 फ्लैट्स हैं। ये सिर्फ कुछ नाम हैं, पर असली सवाल यह है कि इन्होंने ऐसा क्या किया कि करोड़ों अरबों के मालिक बन गए?

आस्था का व्यापार

इनमें से ज़्यादातर बाबाओं की कमाई का आधार है -आपकी आस्था। आपने उन पर विश्वास किया, भारत में कई बाबाओं की कमाई का असली ज़रिया आपकी आस्था होती है। जब लोग किसी बाबा को सिर्फ एक साधु या गुरु नहीं, बल्कि भगवान का अवतार मानने लगते हैं, तो वे अपने दिल-दिमाग से पूरी तरह उनके हवाले कर देते हैं। ऐसे में बाबा जो कहे, वो सही लगता है चाहे वो पैसा मांगें, सेवाएं लें या फिर आपके जीवन के हर फैसले में दखल दें। यही अंधभक्ति उन्हें करोड़पति बना देती है। public opinion on fake babas

1978 में अमेरिका में जो घटना घटी, वह अंधभक्ति की सबसे खतरनाक मिसाल है जहाँ एक धार्मिक नेता के कहने पर 900 लोगों ने सामूहिक रूप से ज़हर पी लिया। यह सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि जब इंसान किसी को भगवान मानकर सोचने की क्षमता खो देता है, तब उसका खुद का अस्तित्व, सोच और आज़ादी खतरे में पड़ जाती है। यही बात भारत में भी कई जगहों पर देखने को मिलती है, जहाँ लोग आंख मूंदकर बाबाओं पर भरोसा करते हैं और बाद में उनका फायदा उठाया जाता है।

आज भी यही हो रहा है। ब्राजील में एक लड़की को ऐसे ही एक धार्मिक संगठन से छुड़ाया गया जहां वह गुलामी जैसी स्थिति में थी। और भारत में? आशाराम बापू 2013 से जेल में हैं लेकिन आज भी लोग उन्हें भगवान मानते हैं। सवाल यह नहीं है कि लोग ऐसा क्यों मानते हैं, सवाल यह है कि बाबा ऐसा कैसे कर पाते हैं?

धन के बीच बैठा एक नकली बाबा और आंखों पर पट्टी बांधे भक्त, आस्था के नाम पर अंधभक्ति दिखाते हुए"

आस्था के नाम पर दिमाग पर कब्ज़ा जमाने का खतरनाक जाल

कई बाबा अपने को चमत्कारी दिखाने के लिए पहले लोगों की भावनाओं से खेलते हैं। वो ऐसे तरीके अपनाते हैं जिससे लोगों का ध्यान उनकी तरफ खिंचे जैसे किसी की बीमारी ठीक कर देना, चमत्कार दिखाना, या कोई ऐसा उपाय बताना जिससे लंबे समय से अटका काम बन जाए। इससे लोग उनके प्रति आकर्षित होते हैं और धीरे-धीरे उन्हें भगवान जैसा मानने लगते हैं।

एक मज़ेदार केस 2008 में सामने आया था एक जादूगर ने बाकायदा “बाबा बनने की ट्रेनिंग क्लास” खोल दी थी, जिसमें सिर्फ ₹5 हज़ार देकर कोई भी सीख सकता था कि कैसे लोगों का भरोसा जीता जाए और खुद को चमत्कारी साबित किया जाए। इससे साफ होता है कि ये सब एक सिखाई और सिखाई जाने वाली स्किल बन गई है यानी लोगों की सोच को पकड़ने और भावनाओं से खेलने का खेल, जिसमें असली मकसद सिर्फ लोगों की आस्था को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना है।

धीरे-धीरे सोच पर कब्ज़ा: जब विश्वास बन जाता है मानसिक गुलामी

जब कोई बाबा आपके ध्यान और भरोसे को जीत लेता है, तो अगला कदम होता है आपके दिमाग को अपने हिसाब से ढालना। इसे ही दिमागी सोच पर कब्ज़ा कहते हैं। इसमें आपको एक खास जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है जैसे रोज़ एक खास धार्मिक किताब पढ़ना, कुछ त्योहारों से दूरी बनाना, कुछ लोगों से बात न करना, या हर दिन कुछ तय नियमों को पालन करना। शुरुआत में आपको लगता है कि आप एक पवित्र और सही रास्ते पर चल रहे हैं, लेकिन असल में आप धीरे-धीरे उस बाबा के बनाए घेरे में बंधते चले जाते हैं। आपकी सोच, आपकी आज़ादी, और आपके फैसले सब पर वो हावी हो जाता है। यही तरीका है जिससे आपकी आज़ाद सोच पर धीरे-धीरे उनका नियंत्रण हो जाता है, और आप खुद को ही समझ नहीं पाते कि आप कब एक स्वतंत्र इंसान से सिर्फ एक अनुयायी बन गए।

जब बाबा बन जाते हैं भगवान

सबसे खतरनाक मोड़ तब आता है जब कोई बाबा खुद को सिर्फ गुरु नहीं, बल्कि भगवान या उनका प्रतिनिधि बताने लगता है। धीरे-धीरे वो आपके दिमाग में यह विश्वास भर देता है कि वही ईश्वर का सच्चा रूप है या उसकी वाणी है। जब तक आपको समझ आता है, तब तक आप उसकी हर बात पर आँख मूंदकर यकीन करने लगते हैं चाहे वह गलत हो या सही। ऐसे कई केस सामने आए हैं जहाँ लोगों ने बाबा को भगवान मान लिया और धीरे-धीरे अपने परिवार, दोस्तों, रिश्तों और समाज से नाता तोड़ बैठे। वो पूरी तरह बाबा की सोच और नियमों में घुल-मिल जाते हैं, और खुद की सोचने की क्षमता खो बैठते हैं। यही है अंधभक्ति का खतरनाक खेल जहाँ इंसान अपने होशो-हवास से भी हाथ धो बैठता है।

और फिर… सब कुछ बाबा के नाम

एक बार जब कोई इंसान पूरी तरह बाबा पर भरोसा करने लगता है, तो उसे ऐसा समझाया जाता है कि अब उसका हर काम भगवान की सेवा है चाहे वो डोनेशन देना हो, बाबा के लिए काम करना हो या अपनी मेहनत और समय समर्पित करना हो। लेकिन असल में यही भक्तों की सेवा और श्रद्धा, उन बाबाओं की दौलत और ऐशो-आराम का जरिया बन जाती है।

इसी का एक बड़ा उदाहरण है बाबा इच्छाधारी भीमानंद, जिसे 2017 में गिरफ्तार किया गया था। उस पर सरकारी नौकरी दिलाने के नाम पर लोगों से लाखों रुपये ठगने का आरोप था। इससे पहले भी वह महिलाओं को नौकरी का लालच देकर गलत धंधों में धकेल चुका था। लेकिन हैरानी की बात ये थी कि इतने गंभीर अपराधों के बावजूद वह बेल पर बाहर था। ये घटनाएं दिखाती हैं कि किस तरह कुछ बाबा सिर्फ आस्था का ही नहीं, कानून और सिस्टम का भी फायदा उठाकर खुद को सुरक्षित रखते हैं और आम लोग बस उनकी सेवा में लगे रहते हैं, सोचते हुए कि वे भगवान का काम कर रहे हैं।

चंद्रास्वामी नाम के आध्यात्मिक गुरु पर कई बार पैसों से जुड़े घोटालों और गलत कामों के आरोप लगे हैं। खासकर 1996 में उन पर एक बड़ा आरोप तब लगा जब उन्हें लंदन के एक व्यवसायी से 1 लाख अमेरिकी डॉलर की धोखाधड़ी करने के मामले में गिरफ्तार किया गया। यह घटना दिखाती है कि कैसे एक धार्मिक छवि वाला व्यक्ति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसे मामलों में लिप्त पाया गया। इसका मतलब ये भी है कि सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी ऐसे बाबाओं की साख और गतिविधियाँ शक के घेरे में रही हैं। यह उदाहरण हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि जब कोई बाबा आध्यात्मिकता से ज़्यादा धन और सत्ता के पीछे भागता है, तो उसका मकसद धर्म नहीं बल्कि निजी लाभ होता है।

बाबा,नेता, उद्योगपति – पावर,पैसा और पॉलिटिक्स का मिला-जुला खेल

एक बाबा, एक भारतीय नेता और एक उद्योगपति एक साथ खड़े हैं, मंदिर और राजनीतिक झंडों की पृष्ठभूमि में – धर्म, राजनीति और व्यापार के गठजोड़ को दर्शाते हुए"

कई बाबा सिर्फ आध्यात्मिक नहीं होते, बल्कि उनके पास गहरी राजनीतिक पहुँच और जबरदस्त पैसा भी होता है। जैसे चंद्रास्वामी जिसने न सिर्फ भारत के तीन प्रधानमंत्रियों बल्कि दाऊद इब्राहिम जैसे अंतरराष्ट्रीय अपराधियों तक को “आध्यात्मिक सलाह” दी थी। बाद में जांच में यह बात सामने आई कि वह दुनिया भर में पैसों से जुड़ी बड़ी धोखाधड़ी में शामिल था।

असल बात यह है कि ये सब अकेले नहीं किया जा सकता। इन बाबाओं के पीछे एक बड़ा नेटवर्क होता है जिसमें राजनेता और बड़ी कंपनियाँ शामिल होती हैं। नेताओं को चुनाव जीतने के लिए जनता के वोटों की ज़रूरत होती है, बाबाओं को अपने साम्राज्य को चलाने और बचाए रखने के लिए राजनीतिक सुरक्षा और ढेर सारा पैसा चाहिए, वहीं बड़ी कंपनियों को ऐसे सरकारी नियम और नीतियाँ चाहिए जो उनके बिज़नेस को फायदा पहुँचाएं। इसलिए ये तीनों एक-दूसरे का साथ देते हैं नेता बाबा से वोट दिलवाता है, बाबा नेता से सुरक्षा पाता है, और कंपनियाँ अपने फायदे के लिए दोनों को सपोर्ट करती हैं। चुनाव के समय ये गठजोड़ और भी मज़बूत हो जाता है बाबा का ट्रस्ट फंडिंग का ज़रिया बनता है और बदले में बाबा अपने भक्तों को उस पार्टी का समर्थन के लिए तैयार करते हैं यही है धर्म, यह राजनीति और पैसे का ऐसा खेल है जो आम लोगों को ऊपर से नजर नहीं आता, लेकिन अंदर ही अंदर बहुत गहराई से चलता रहता है।

कैसे कमाते हैं बाबा करोड़ों? डोनेशन से लेकर बिजनेस तक

अब कुछ बाबा सिर्फ प्रवचन और आध्यात्मिक बातें करने तक सीमित नहीं रह गए हैं। उन्होंने खुलेआम बड़े-बड़े बिजनेस शुरू कर दिए हैं, जिनसे करोड़ों की कमाई हो रही है। उदाहरण के लिए बाबा रामदेव और उनकी कंपनी पतंजलि, जिसने अकेले 2022 में ₹200 करोड़ से ज्यादा का कारोबार किया। यह एक वैध और खुला बिजनेस मॉडल है, जो सभी के सामने है। लेकिन हर बाबा ऐसा नहीं करता। कई बाबाओं ने अपने नाम पर ऐसी कंपनियां खोल रखी हैं जो असल में कुछ करती ही नहीं सिर्फ कागज़ों में मौजूद रहती हैं ताकि पैसे इधर-उधर किए जा सकें या काले धन को सफेद बनाया जा सके। ये कंपनियाँ न तो लोगों को दिखाई देती हैं, न ही इनके काम में कोई खुलापन या साफ़-साफ़ जानकारी नहीं होती।, लेकिन इनसे मोटा मुनाफा जरूर कमाया जाता है।

नकली कंपनियाँ और बाबाओं की कमाई का राज

कई फर्जी बाबाओं के पास सिर्फ भक्तों से मिला हुआ पैसा नहीं होता, बल्कि उन्होंने उस पैसे को छुपाने और इधर-उधर करने के लिए नकली कंपनियाँ भी बना रखी होती हैं। शेल कंपनियाँ वो होती हैं जो सिर्फ कागज़ों पर मौजूद होती हैं न कोई असली दफ्तर, न कर्मचारी, न कोई प्रॉडक्ट या सर्विस। इनका एकमात्र काम होता है पैसा इधर से उधर करना ताकि टैक्स से बचा जा सके और अवैध कमाई को वैध दिखाया जा सके।

जैसे जाकिर नायक ने भारत छोड़ने से पहले अपनी चार शेल कंपनियों के ज़रिए लगभग 200 करोड़ रुपये विदेश भेज दिए। इसी तरह आसाराम बापू ने भी इसी सिस्टम का इस्तेमाल करके लगभग 50 संपत्तियाँ अपने नाम करवाईं।

ये कंपनियाँ इतनी चालाकी से ऑपरेट किया जाता है कि टैक्स विभाग तक को भनक तक नहीं लगती । कभी ट्रस्ट से पैसे ट्रांसफर किए जाते हैं, तो कभी किसी नकली सर्विस के नाम पर पैसे आगे बढ़ा दिए जाते हैं ताकि कोई पूछताछ न कर सके। ये एक बेहद चालाक और गुप्त तरीका है काले धन को सफेद बनाने का।

N.G.O.- बाबाओं के सबसे खतरनाक हथियारों में से एक

कई फर्जी बाबाओं ने N.G.O यानी समाज सेवा संगठनों का इस्तेमाल सिर्फ एक ढाल की तरह किया है। ये N.G.O देखने में भले ही सेवा और मदद के लिए बनाए गए लगते हैं, लेकिन इनके पीछे असली मकसद कुछ और होता है पैसा इकट्ठा करना और उसे निजी खर्चों या देश विरोधी गतिविधियों में लगाना।

जैसे जाकिर नायक का “इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन” जिसके जरिए पाकिस्तान से भारत में फंडिंग की जा रही थी। यही नहीं, 2021 में सरकार ने कई ऐसे N.G.O को बंद भी कर दिया क्योंकि उनके पैसों के लेन-देन में गड़बड़ी पाई गई थी।

ये N.G.O फंड इकट्ठा करने का एक वैध और साफ-सुथरा रास्ता दिखाते हैं, लेकिन असल में इनका इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग, पॉलिटिकल फंडिंग और कई बार देशविरोधी कामों के लिए होता है और आम जनता को इसकी भनक तक नहीं लगती। यही वजह है कि N.G.O बाबाओं के सबसे खतरनाक हथियारों में से एक बन चुके हैं।

ईश्वर को मानिए, इंसानों को भगवान मत बनाइए

एक नकली बाबा दौलत और भक्तों के बीच हंसता हुआ, जबकि दूसरी ओर एक बाबा महिलाओं को भावनात्मक रूप से शोषित करता दिख रहा है – ढोंग और आस्था के नाम पर शोषण की दोहरी तस्वीर"

सभी बाबा या हर धर्म बुरा नहीं होता बहुत से बाबा सच में समाज और लोगों की भलाई के लिए काम करते हैं। लेकिन कुछ ढोंगी बाबाओं ने धर्म का सहारा लेकर ऐसा जाल बिछा दिया है जिसमें लोग बिना सोचे-समझे फंसते जा रहे हैं।

सबसे दुख की बात यह है कि लोग आंख बंद करके इन बाबाओं पर इतना भरोसा कर लेते हैं कि अपनी सोचने-समझने की ताकत तक खो बैठते हैं। वो ये नहीं देख पाते कि जिन्हें वो भगवान मान रहे हैं, वो असल में उन्हें डरा-धमका कर, भगवान के नाम का डर दिखाकर अपने कंट्रोल में ले रहे हैं।

असल धर्म तो इंसान को हिम्मत देता है, उम्मीद देता है, सोचने की आज़ादी देता है। लेकिन जहाँ डर, दबाव और अंधभक्ति हो वहाँ धर्म नहीं, बल्कि धोखा होता है। यही पहचान सबसे ज़रूरी है कि आप सच में आस्था में हैं या बस किसी के जाल में फंसे हुए हैं।

क्या हल है?

सीधा और साफ़ संदेश है कि आज के समय में अंधभक्ति से ज़्यादा ज़रूरी है जागरूकता। कई बार कुछ बाबा खुद को भगवान का दूत बताकर लोगों को डराते हैं, उनसे जबरदस्ती चंदा मांगते हैं, और उन्हें अपने नियमों के अनुसार चलने पर मजबूर करते हैं। वो धीरे-धीरे आपको आपके परिवार, दोस्तों और समाज से अलग कर देते हैं ताकि आप पूरी तरह उनके काबू में रहें।

ऐसे में ज़रूरी है कि आप आंख बंद करके किसी पर भरोसा न करें। धर्म पर विश्वास रखना अच्छी बात है, लेकिन अगर वो विश्वास सोच-समझकर न हो और सिर्फ डर या दबाव में लिया गया हो, तो वो आस्था नहीं, बल्कि अपने ही साथ किया गया धोखा है। इसलिए हर बार सोचिए, सवाल कीजिए और किसी भी बाबा या गुरु को भगवान मानने से पहले उसके कर्मों को देखिए क्योंकि आज ज़रूरत सच्चे धर्म की नहीं, बल्कि सच्चे विवेक की है। धर्म पर विश्वास रखना गलत नहीं, लेकिन आँख बंद करके किसी पर भरोसा करना, खुद के साथ धोखा है।


निष्कर्ष: 🕉️ ✝️ ☪️ ✡️ 🛐 🔱

भारत में बाबा बनना अब एक बिज़नेस मॉडल बन चुका है। इसमें पैसा भी है, ताकत भी और राजनीति से रिश्ता भी। लेकिन असली नुकसान होता है आम इंसान का जो अपने दुखों के बीच किसी बाबा को भगवान समझ बैठता है।

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