क्या हमारी ज़िंदगी सिर्फ नौकरी की तैयारी के लिए बनी है ?

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Unemployment Problem in India -बेरोजगारी की असली हकीकत

इस समय हर घर, हर नौजवान के दिल की सबसे बड़ी चिंता बन चुका है बेरोजगारी। इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2025 के अनुसार, हर तीन में से एक युवा इस वक्त बेरोजगार है। सोचिए, कितनी बड़ी संख्या है ये! देश में पढ़े-लिखे लोग, जिनके पास ग्रेजुएशन की डिग्रियां हैं, वो भी नौकरी के लिए भटक रहे हैं। अब सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है? हमारे देश की आबादी 140 करोड़ से ज्यादा है, और इतने लोगों को जीने के लिए हर दिन की ज़रूरत की चीजें चाहिए जैसे दाल, चावल, आटा, चीनी, तेल, साबुन, शैंपू, कपड़े, जूते, स्कूल, अस्पताल, फिल्में, टीवी, स्कूटर, और बहुत कुछ। इतनी बड़ी मार्केट है, विदेशी कंपनियां यहां आती हैं और अरबों-खरबों का मुनाफा कमा कर चली जाती हैं, फिर भी हमारे देश के युवाओं को नौकरी क्यों नहीं मिलती? उदाहरण के तौर पर पेप्सी की ही बात करें, तो उसकी इंडिया से सालाना कमाई लगभग 8000 करोड़ रुपए है, और कोका कोला इंडिया उससे भी ज्यादा करीब 12800 करोड़। लेकिन हमारे युवा को ₹10000 की भी नौकरी नहीं मिलती। ये सब सुनकर लगता है कि कोई बहुत गहरी समस्या है Unemployment Problem in India

बेरोजगारी पर चुप है सरकार, और मीडिया ने सवाल पूछना छोड़ दिया – इस हालत के लिए जिम्मेदार कौन है।

Young Indian graduate worried about future – holding degree with stress and pressure of job, family, marriage, and responsibilities – unemployment crisis in India visual representation"
हाथ में डिग्री है… लेकिन दिमाग में हज़ार सवाल नौकरी कब मिलेगी? माँ-बाप की मेहनत का क्या होगा? शादी, घर, समाज की बातें… क्या हमारी पढ़ाई कभी हमें रोज़गार दिला पाएगी?

अब हमें बार-बार बताया जाता है कि भारत अब दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, और जल्द ही हम 5 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बन जाएंगे। लेकिन सवाल ये है कि इस इकॉनमी में क्या आम आदमी के लिए कोई जगह है? क्या इसमें नौकरी है? असल में ऐसा लगता है कि हमारी नौकरियां हमसे कोई छीन रहा है, और हम चुपचाप देख रहे हैं। अब आइए इस पर नजर डालते हैं कि इस हालत के लिए जिम्मेदार कौन है। सबसे पहले सरकार की बात करते हैं। याद है प्रधानमंत्री मोदी जी ने 2014 में कहा था कि हर साल 2 करोड़ नौकरियां देंगे? अब कुछ मीडिया चैनल्स कहते हैं कि उन्होंने ऐसा कभी कहा ही नहीं। एबीपी न्यूज़ जैसे चैनल्स तो यहां तक कह देते हैं कि मोदी जी ने तो सिर्फ इतना कहा था कि कांग्रेस ने रोजगार नहीं दिया, उन्होंने वादा थोड़े ही किया था। अरे भाई, फिर वो हरियाणा चुनाव में जो ऐड चलाया गया था “युवाओं को बेरोजगार रखने वालों को जनता माफ नहीं करेगी”, वो क्या था?

CMIE की रिपोर्ट 2025 : भारत में नौकरियों की हालत बहुत खराब हो चुकी है।

देश में रोजगार की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है और मार्च 2025 की रिपोर्ट्स ने हालात की गंभीरता को और भी उजागर कर दिया है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) की रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ एक महीने में 42 लाख लोगों की नौकरी पर असर पड़ा किसी की नौकरी चली गई, तो किसी ने अब नौकरी ढूंढना ही बंद कर दिया क्योंकि उम्मीद ही नहीं बची। देश में जो लोग काम करने लायक हैं (उन्हें श्रम बल कहते हैं), उनकी संख्या भी कम हो गई है। फरवरी में ये संख्या करीब 45.77 करोड़ थी जो मार्च में घटकर 45.35 करोड़ हो गई। यानी लाखों लोग अब काम के चक्कर में ही नहीं हैं। और जो लोग काम कर रहे थे, उनकी संख्या भी घटी फरवरी में 41.91 करोड़ थे, मार्च में 41.85 करोड़ रह गए।

अब आप सोचेंगे कि बेरोजगारी दर तो 8.4% से घटकर 7.7% हो गई, तो क्या ये अच्छी बात है? नहीं! क्योंकि दर इसलिए घटी है कि अब लोग नौकरी की तलाश ही नहीं कर रहे हार मान चुके हैं। इसका मतलब ये है कि बेरोजगारी की गिनती में वही लोग आते हैं जो actively job ढूंढ रहे हैं। अगर लोग ढूंढना ही छोड़ दें, तो वो गिनती से बाहर हो जाते हैं और दर कम दिखती है। लेकिन असल में तो हालत और भी खराब है। दफ्तरों में जो लोग काम करते हैं, उन सेक्टरों में भी भर्ती घटी है। आईटी सेक्टर भी पीछे नहीं है, वहाँ भी 7% की गिरावट है। प्रधानमंत्री मोदी ने जगह-जगह जाकर मेक इन इंडिया और रोजगार की बात की थी। उन्होंने कहा था कि नौजवान अपने ही इलाके में रोजगार पाएंगे, ताकि शाम को अपने माता-पिता के साथ बैठ सकें। लेकिन अब जब कोई इन वादों की याद दिलाता है, तो मीडिया कहता है “ये तो बस चुनावी बातें थीं।” एक पुराना वीडियो भी है जहां मोदी जी कहते हैं “हमारा लक्ष्य है एक अरब नौकरियां बनाना”, यानी उन्होंने खुद बोला था।

लोग रिश्वत के लिए सरकारी नौकरी चाहते हैं?

भारतीय एजुकेशन सिस्टम से परेशान एक युवा छात्र क्लासरूम में बैठा है, हाथ में सिर थामे सोच में डूबा है, पीछे ब्लैकबोर्ड पर गणित और अंग्रेजी के फार्मूले हैं।
डिग्री मिल गई, अब नौकरी का इंतज़ार है यही है आज का सिस्टम!

अब आइए बात करते हैं मीडिया की। हमारे कुछ न्यूज़ चैनल्स, जो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाते हैं, वो बेरोजगारी पर बात करने के बजाय सरकार की छवि चमकाने में लगे रहते हैं। उदाहरण के लिए सुधीर चौधरी का प्रोग्राम देखिए उन्होंने कहा कि लोग सरकारी नौकरी इसलिए चाहते हैं ताकि ऊपर की कमाई कर सकें, यानी रिश्वत ले सकें। उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी नौकरी में लोग आलसी हो जाते हैं, क्योंकि काम के घंटे कम होते हैं, छुट्टियां ज़्यादा होती हैं और ज़िम्मेदारी नहीं होती। क्या यह सच है? नहीं ! सच्चाई ये है कि लोग सरकारी नौकरी इसलिए चाहते हैं क्योंकि वो एक सुरक्षा देती है एक भरोसा देती है कि महीने के आखिर में घर चलाने के लिए कुछ पैसे आएंगे। 2019 में एक सर्वे में यह सामने आया कि हर दो में से एक भारतीय ने किसी सरकारी कर्मचारी को रिश्वत दी थी, यानी यह हमारी व्यवस्था की कमजोरी है, न कि जनता की गलती।

अगर जनता रिश्वत देती है, तो ये इसलिए क्योंकि सिस्टम उन्हें मजबूर करता है। अब ये सिस्टम किसका बनाया हुआ है? नेताओं का? अफसरों का? सरकार का? और अगर रिश्वतखोरी इतनी सामान्य है, तो प्रधानमंत्री का “ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा” का नारा सिर्फ एक जुमला बन कर रह गया है। इसके अलावा सुधीर चौधरी जैसे लोग ये कहकर बच निकलते हैं कि युवाओं में स्किल नहीं है, उन्हें हुनर नहीं आता। तो फिर सवाल ये है कि स्किल इंडिया अभियान का क्या हुआ? उसका क्या नतीजा निकला?

कहीं ऐसा तो नहीं कि सिस्टम ही बेरोजगार पैदा कर रहा है?

अब ज़रा ग्राउंड रियलिटी पर आते हैं क्या देश में वाकई नौकरियों की ज़रूरत है या फिर युवा ही गलत दिशा में सोच रहे हैं? चलिए आंकड़ों से समझते हैं। मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन की 2021-22 की रिपोर्ट के अनुसार हर साल करीब 2.85 करोड़ बच्चे 12वीं कक्षा में दाखिला लेते हैं, लेकिन इनमें से बहुत से बच्चे ऐसे भी होते हैं जो स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं। आंकड़े बताते हैं कि क्लास 10 के बाद लगभग 12.6% बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं, यानी हर 100 में से 13 बच्चे स्कूल से बाहर हो जाते हैं। अपर प्राइमरी (6-8वीं) में ये संख्या 3% है और प्राइमरी (1-5वीं) में 1.45% बच्चे बीच में पढ़ाई छोड़ देते हैं। इन सबको जोड़ें तो हर साल करीब 3.3 से 3.4 करोड़ बच्चे ऐसे होते हैं जो स्कूल सिस्टम से बाहर आ जाते हैं कुछ कॉलेज की तरफ बढ़ते हैं, और बहुत सारे सीधे बेरोजगारी की तरफ। यानी देश में हर साल करोड़ों नए युवा ऐसे होते हैं जिन्हें नौकरी या कोई काम चाहिए, लेकिन वो या तो पढ़ाई में पीछे रह जाते हैं या सिस्टम उन्हें संभाल नहीं पाता।

सरकारी MBBS सीटें कम, प्राइवेट कॉलेज महंगे- मिडिल क्लास क्या करे?

Young Indian men and women standing in a long queue outside a Government Job Center for 2025 recruitment, holding degree certificates, showing the employment crisis in India.
10,000 सरकारी पदों के लिए 5 लाख आवेदन भारत के युवाओं की बेरोजगारी की सबसे बड़ी तस्वीर!”

अब सोचिए क्या देश के पास इतने कॉलेज हैं कि करोड़ों बच्चों को एडमिशन दे सके? और अगर दे भी सके, तो क्या उन कॉलेजों के पास इतना अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर है कि वो उन्हें वाकई स्किल दे सकें? हमारे देश में जितने बच्चे पढ़-लिखकर डॉक्टर या इंजीनियर बनना चाहते हैं, उनके लिए न तो कॉलेज में सीटें हैं और न ही पढ़ाई का ढंग का माहौल। NEET UG 2025 में 22.09 लाख से ज़्यादा बच्चों ने मेडिकल की परीक्षा दी, लेकिन पूरे देश में सिर्फ 1.18 हजार कुल MBBS सीटें थीं। राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन (NMC) के अनुसार चार्ट (2024‑25) में 1,18,190 सीटें (780 मेडिकल कॉलेजों में) दी गई हैं। यानी हर 15 में से सिर्फ 1 बच्चे को ही सीट मिलती है, बाकी सब बाहर हो जाते हैं। और अगर किसी को सरकारी कॉलेज नहीं मिला, तो प्राइवेट कॉलेजों की फीस इतनी ज़्यादा है कि गरीब या मिडिल क्लास परिवार के बच्चे तो सिर्फ सपना देख सकते हैं, हकीकत नहीं।

महंगे मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई क्या आम आदमी के बस की बात है?

DY Patil जैसे कॉलेज में MBBS की फीस 1.4 करोड़ रुपये है, और औसतन प्राइवेट कॉलेज की फीस 25–30 लाख रुपये होती है। अब आप ही सोचिए जब देश के 90% लोगों की कमाई ₹25,000 से भी कम है, तो इतने महंगे मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई क्या आम आदमी के बस की बात है? सरकार की रिपोर्ट बताती है कि पिछले कुछ सालों में इंजीनियरिंग की सीटें भी घटती जा रही हैं। 2018 में 16.07 लाख लाख सीटें थीं, जो 2025 में घटकर 14.90 लाख रह गईं। और हैरानी की बात ये है कि इन सीटों में से भी कई सीटें खाली रह जाती हैं यानी बच्चे एडमिशन ही नहीं ले रहे।
इसका मतलब ये है कि या तो लोग अब इंजीनियरिंग करना नहीं चाहते, या फिर पढ़ाई की गुणवत्ता और नौकरी की गारंटी नहीं है, इसलिए बच्चे और पैरेंट्स भरोसा नहीं कर पा रहे।

कुल मिलाकर, बात ये है:
हमारे देश में न पढ़ाई के लिए सही इंफ्रास्ट्रक्चर है, न सभी के लिए सस्ती और अच्छी शिक्षा, और न पढ़ने के बाद कोई भरोसेमंद रोजगार। सपना तो हर बच्चा देखता है डॉक्टर, इंजीनियर बनने का पर सिस्टम उस सपने को पूरा करने की जगह उसे तोड़ देता है। अब सोचिए, इतने सारे बच्चे डॉक्टर बनना चाहते हैं, और देश को भी डॉक्टरों की सख्त ज़रूरत है लेकिन सीटें ही नहीं हैं। और जो हैं भी, उनकी आधी सरकारी कॉलेजों में हैं और आधी प्राइवेट में, जहां फीस इतनी ज़्यादा है कि आम इंसान का बच्चा तो सपने में भी नहीं सोच सकता। DY Patil जैसे कॉलेज की MBBS फीस 1.4 करोड़ रुपये है। औसतन किसी प्राइवेट कॉलेज की फीस 25–30 लाख से कम नहीं। अब जरा बताइए क्या देश के 90% लोग इतना खर्च उठा सकते हैं? 2024 की रिपोर्ट कहती है कि देश के 80% लोगों की महीने की कमाई ₹20,000 से भी कम है।

महंगी पढ़ाई, कमज़ोर क्वालिटी -ये है भारत की एजुकेशन सिस्टम की हकीकत!

आजकल इंजीनियरिंग या टेक्निकल पढ़ाई करना आसान नहीं रहा। सरकारी कॉलेजों की फीस भी अब ₹2 लाख सालाना हो गई है, यानी एक B.Tech की डिग्री पूरी करने में ₹8 लाख तक लगते हैं, और प्राइवेट कॉलेजों में तो ये खर्च और भी ज़्यादा है। लेकिन इतनी भारी फीस देने के बाद भी पढ़ाई की क्वालिटी बहुत कमजोर है ज़्यादातर फैकल्टी या तो अयोग्य है या उन्हें बहुत कम सैलरी दी जाती है। एक रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ 44.5% टीचर्स के पास PhD है, बाकी सिर्फ मास्टर्स डिग्री वाले हैं। हालत तो ये है कि IITs जैसे संस्थानों में भी 4500 से ज़्यादा फैकल्टी की पोस्ट खाली हैं, और पूरे देश में 40% से ज़्यादा टीचिंग पोजिशन पर कोई काम ही नहीं कर रहा। लैब, क्लासरूम और आधारभूत सुविधाएं भी कई कॉलेजों में नाम की हैं इसीलिए AICTE को 2019 में 40,000 इंजीनियरिंग सीटें बंद करनी पड़ीं। तमिलनाडु में 37 ऐसे कॉलेज मिले जहाँ एक भी बच्चा एडमिशन लेने नहीं आया! और जब पढ़ाई ही ढंग से नहीं होगी, तो नौकरी कैसे मिलेगी? यही कारण है कि 80% इंजीनियर नौकरी के लायक नहीं माने जाते उनके पास AI, मोबाइल ऐप डेवलपमेंट जैसी ज़रूरी स्किल्स ही नहीं होतीं। अब कुछ लोग कहते हैं कि ITI करो, स्किल सीखो – लेकिन वहां भी 25 लाख सीटों में से आधी खाली हैं, और जो पास होते हैं उन्हें भी जॉब की कोई गारंटी नहीं मिलती। यानी असल में न पढ़ाई सस्ती है, न अच्छी, और न ही उसका कोई ठोस रिज़ल्ट।

स्किल है फिर भी नौकरी क्यों नहीं? और कंपनियों का बेरहम चेहरा

अगर हम ये मान भी लें कि देश के सारे ITI, मेडिकल, और इंजीनियरिंग कॉलेज फुल हो जाएं, सब जगह टॉप क्लास स्किल्स सिखाई जाएं, और हर बच्चा मेहनत करे तब भी क्या इन सभी को नौकरी मिल पाएगी? दुर्भाग्य से इसका जवाब है “नहीं”। क्योंकि असली प्रॉब्लम सिर्फ स्किल या एजुकेशन की नहीं है, बल्कि जॉब्स की भारी कमी है। जुलाई 2023 के CMIE डेटा के मुताबिक, 2016 में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 5.1 करोड़ लोग काम करते थे, लेकिन 2020-21 में यह गिरकर सिर्फ2.73 करोड़ रह गया। यानी 35% से ज्यादा जॉब्स गायब हो गई हैं।

Young Indian man holding a degree certificate standing in a long queue outside a government job center with hundreds of other candidates waiting for recruitment in India.
सरकारी नौकरी की तलाश में डिग्रीधारी युवा 2025 में भारत की बेरोजगारी की असल तस्वीर!”
यह तस्वीर देश के लाखों शिक्षित युवाओं की कहानी कहती है, जो सरकारी नौकरी पाने के लिए कतारों में खड़े हैं।

अब आप कहेंगे कि कोविड का असर रहा होगा। हां, कोविड का असर तो था, लेकिन दिक्कत यहीं खत्म नहीं हुई बल्कि हालात और बिगड़ते गए। मई 2020 में करीब 12 करोड़ लोगों की नौकरियां चली गईं, और जून 2021 में दूसरी लहर के दौरान 1 करोड़ से ज़्यादा लोगों का रोजगार छिन गया। लगभग 97% घरों की आमदनी कम हो गई। लेकिन हैरानी की बात ये है कि कोविड के बाद भी कंपनियों ने लोगों को निकालना नहीं रोका। 2023 में भी इंडियन स्टाफिंग फेडरेशन ने बताया कि कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले लाखों लोग बेरोजगार हो गए। IT सेक्टर भी इससे अछूता नहीं रहा जहां जून 2023 में 11,000 से ज्यादा स्टार्टअप कर्मचारियों को निकाला गया और अगस्त आते-आते ये संख्या लाखों में पहुंच गई। बड़ी-बड़ी कंपनियों जैसे Infosys, TCS और Cognizant ने तो नई भर्तियां ही बंद कर दीं। जबकि यही कंपनियां करोड़ों का मुनाफा कमा रही थीं, लेकिन फिर भी नई नौकरियां नहीं दे रहीं, बल्कि पुराने कर्मचारियों से ही ज़्यादा काम करवाया जा रहा है। नतीजा- लोग थक चुके हैं, मानसिक रूप से टूट चुके हैं।2022 की McKinsey Health Institute की रिपोर्ट कि मुताबिक भारत के 38% कर्मचारी burnout यानी मानसिक थकान और तनाव से जूझ रहे हैं, जिससे वो बेजान-से हो चुके हैं। भारत अब दुनिया में वर्कप्लेस स्ट्रेस में नंबर 1 है। जापान दूसरे नंबर पर है 31% के साथ I.L.O. (International Labour Organisation) की 2021 रिपोर्ट के अनुसार “Indian workers work the longest but earn the least” यानी भारत के कर्मचारी सबसे ज्यादा काम करते हैं लेकिन सबसे कम कमाते हैं।और ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि कंपनियां अब सिर्फ मुनाफा देखती हैं उन्हें लोगों की मेहनत या ज़रूरतों से फर्क नहीं पड़ता। उन्हें लगता है, “कम लोगों से ज़्यादा काम लो, और सैलरी बचाओ”, यही उनका नया फॉर्मूला बन चुका है।

ये ट्रेंड केवल भारत तक सीमित नहीं है। दुनिया भर की बड़ी कंपनियां यही कर रही हैं।

उदाहरण के लिए:

  • Amazon ने सिर्फ तीन महीनों में 27,000 से ज्यादा एम्प्लॉईज को निकाला।
  • Meta (Facebook) ने नवंबर 2022 से अब तक 21,000 लोगों को निकाल दिया।
  • Coca-Cola के अमेरिका में 2012 में 1.59 लाख एम्प्लॉई थे, लेकिन 2022 में सिर्फ 82,000 बचे हैं, यानी लगभग आधे हो गए।

अब सोचिए मुनाफा तो बढ़ा है, लेकिन रोजगार घट गया। ये है आज की कॉर्पोरेट सच्चाई

असल में देश में रोज़गार कौन दे रहा है?

जब हम देखते हैं कि बड़ी-बड़ी कंपनियां हजारों करोड़ का मुनाफा कमाती हैं, लेकिन नौकरियां गिनी-चुनी ही देती हैं, तो सवाल उठता है कि असल में देश में रोज़गार कौन दे रहा है? जवाब है हमारे देश के छोटे व्यापारी, कारीगर, हैंडीक्राफ्ट वाले और कोऑपरेटिव सेक्टर। जहां मल्टीनेशनल कंपनियां करोड़ों में कमाती हैं लेकिन बस हजारों लोगों को नौकरी देती हैं, वहीं हैंडीक्राफ्ट सेक्टर ने 2022 में ₹22,000 करोड़ का टर्नओवर किया और 9 लाख से ज़्यादा लोगों को काम दिया। जबकि हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसी बड़ी कंपनी ₹58,000 करोड़ कमा कर भी सिर्फ 21,000 लोगों को ही नौकरी देती है। यही नहीं, कुछ रिपोर्टों के मुताबिक पूरा हैंडीक्राफ्ट सेक्टर ₹32,000 करोड़ का है और इसमें करीब 69 लाख लोग काम करते हैं। ये वो लोग हैं जो बिना सुर्खियों में आए, बिना शोर किए, देश को रोजगार दे रहे हैं जैसे कि बुनकर, रेडी वाले, दुकानदार, दूधवाले, चूड़ी बनाने वाले, हाथ से कढ़ाई करने वाले, यानी वो लोग जिन पर शायद ही कोई न्यूज़ चैनल बात करता हो। नीति आयोग भी मानता है कि देश की 90% वर्कफोर्स इन छोटे और अनौपचारिक सेक्टरों में काम करती है, जो जीडीपी का आधा हिस्सा संभालते हैं। कहने का मतलब ये है कि भारत में असली नौकरी देने वाले ये लोग हैं न कि चमकदार बिल्डिंगों में बैठी कंपनियां।

अब युवा क्या करे? और असली समाधान क्या है?

सबसे पहले हमें अपना ध्यान उन चीज़ों से हटाना होगा जो सिर्फ वक्त और मन दोनों की बर्बादी करती हैं जैसे मोबाइल में मौजूद सट्टेबाज़ी, बेटिंग और पैसे डुबाने वाले गेम्स। ये ना तो आपको कोई हुनर सिखाते हैं, ना ही कोई कमाई देते हैं बस धीरे-धीरे आपका समय और आत्मविश्वास खत्म करते हैं। इसलिए इनसे जितनी जल्दी दूरी बना लें, उतना अच्छा। और याद रखिए, सरकारें बदलती रहेंगी, उनके नारे भी बदलते रहेंगे लेकिन आपकी मेहनत, आपका हुनर और आपका आत्मविश्वास ही आपके जीवन की असली ताकत है। आज देश को सिर्फ नौकरी की नहीं, एक नई सोच की ज़रूरत है। हमें अब अपने बच्चों को सिर्फ पढ़ाना ही नहीं, बल्कि उन्हें कमाई की ट्रेनिंग भी देनी होगी। ताकि वो सिर्फ नौकरी ढूंढ़ने वाले न बनें, बल्कि खुद काम शुरू करें और दूसरों को भी काम दे सकें। यही असली आत्मनिर्भरता है।

निष्कर्ष:

भारत में बेरोजगारी की समस्या बहुत गहरी है और इसका जिम्मेदार सिर्फ युवा नहीं है, बल्कि पूरा सिस्टम है।

  • सरकार ने वादे किए, पर निभाए नहीं
  • एजुकेशन सिस्टम सिर्फ डिग्री देता है, स्किल नहीं
  • कंपनियां मुनाफा तो कमाती हैं, पर रोजगार नहीं देतीं
  • मीडिया सवाल नहीं पूछता, बस महिमामंडन करता है
  • और जनता उम्मीदें लगाए बैठी रहती है कि कोई मसीहा आएगा और बदलाव कर देगा

पर सच तो यह है कि अब बदलाव आपको खुद लाना होगा
📌 सरकारी नौकरी मिले तो ठीक, लेकिन अगर न मिले तो खुद का हुनर बनाइए, खुद का रास्ता बनाइए।
📌 भारत को नौकरी नहीं चाहिए भारत को काम चाहिए, रोज़गार चाहिए, और आत्मनिर्भर सोच चाहिए।
📌 और ये सब शुरू हो सकता है आपसे, आज से

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